लेखनी कहानी -13-Sep-2022 अनजान मुसाफिर

अनजान मुसाफिर

यह बात काफी पुरानी 25 फरवरी 1991 की है। तब मेरी नई-नई शादी हुई थी, और मैं एक नई दुल्हन थी। इसीलिए मैं हनीमून के लिए अपने पति के साथ नैनीताल जाने के लिए निकली थी। तभी मेरी सासू मां ने पूर्णागिरी दर्शन के लिए साथ चलने की इच्छा जताई। परन्तु मेरे पति ने उनसे कहा कि हम नैनीताल जाने से पहले माता पूर्णागिरी के दर्शन करेंगे, उसके बाद ही आगे जाएंगे। सासू मां के कहने के अनुसार ही हम लोग पहले माता पूर्णागिरी के दर्शन करने गए। और फिर वहां से नैनीताल के लिए रवाना हुए।

दर्शन करके लौट रही थी,  पर्वत से नीचे उतरने के बाद हमने स्नान किया। और स्नान करने के बाद हम एक ढाबे पर आकर बैठ गये। वहां पर दो वृद्ध पति पत्नी  पहले से बैठे हुए थे। परंतु हम उनसे अनजान थे।क्योंकि वह हमारे लिए अनजान थे और बुजुर्ग थे, और पास में बैठे मुझे मुस्काते हुए मुझे टुकर टुकर निहार रहे थे। तो मैंने उन्हें प्रणाम कर लिया और उन्होंने मुझे ढेरों आशीर्वाद दिया। क्योंकि
 
मैं एक नई नवेली दुल्हन थी,सो मैंने थोड़ा सा श्रृंगार किया। वह दोनों मुझे बहुत प्रेम से निहार रहे थे, जैसे मेरा उनका कोई पुराना रिश्ता हो।फिर उन्होंने हमसे बात शुरू की। पूछा बेटा..... कहां से हो आप? आप की नई नई शादी हुई है। तो हमें भी उनसे अच्छे से बात की और जो उन्होंने पूछा उसका उत्तर दिया। बात करते-करते जैसे एक रिश्ता कायम हो गया हो।

और जब मैं श्रंगार कर रही थी तो उनकी वृद्ध पत्नी ने मेरे पति से पूछा....कि भैया हम बिटिया का एक फोटो खींच लें, तुम्हारी पत्नी बहुत सुंदर है। इसने हमारा मनमोहन लिया है। मेरे पति ने थोड़ा सोच विचार कर उन्हें फोटो  खींचने की इजाजत दे दी। और जब मैंने श्रृंगार कर लिया तो उन्होंने मेरी दो फोटो खींच ली थी, जो कि वह अपने साथ ले गए। उस समय ये सुविधा नहीं थी, कि कैमरे से तुरंत फोटो निकल आए ।
वह अनजान मुसाफिर थोड़ी ही देर में बहुत अपने से लगने लगे थे। फिर थोड़ी देर में हम लोग नैनीताल के निकल पड़े,तब तक वह दोनों वहीं बैठे रह गये।जबकि मैं आज भी नहीं जानती, कि वह कहां के थे। और हमारी दोबारा उनसे मुलाकात भी नहीं हुई,

 लेकिन आज भी हमें वह दो अनजान मुसाफिर याद है। और जीवन भर याद रहेंगे। शायद वह भी हमें याद करते होंगे जब हमारी फोटो उनके सामने आती होगी तो तो हमें जरूर याद करते होंगे। कई बार सफर में कुछ ऐसे अनजान मुसाफिर मिल जाते हैं, जिन को भूल पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होता है और हमारे दिलों में उनकी याद अमर हो जाते हैं।
 आज जब अनजान मुसाफिर विषय देखा, तो मैं अपनी पुरानी दुनिया में वापस चली गई और मुझे दो अनजान मुसाफिर वृद्ध पति पत्नी की याद आ गई। आज मैंने अपना अनुभव इसलिए साझा किया कि शायद आप सभी को यह  पसंद आएगा। कभी-कभी कोई अनजान कितना अपना सा हो जाता है, वे जीवन पर्यंत भुलाए नहीं भूलता है।

अलका गुप्ता 'प्रियदर्शिनी' 
लखनऊ उत्तर प्रदेश।
स्व रचित मौलिक व अप्रकाशित 
@सर्वाधिकार सुरक्षित।

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10 Comments

Swati chourasia

15-Sep-2022 05:43 PM

बहुत खूब 👌

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Seema Priyadarshini sahay

15-Sep-2022 05:23 PM

बहुत खूबसूरत

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Kaushalya Rani

14-Sep-2022 08:52 PM

Very nice

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